भारत में धर्मनिरपेक्षता Secularism in India
भारतीय संस्कृति में सदा से ही धर्म का विशेष स्थान रहा है, किंतु कालांतर में धर्म के दृष्टिकोण का संकुचित जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा है। सामाजिक एकता पर आघात पड़ा तथा समाज अनेक टुकड़ों में विभक्त हो गया। इसी कट्टू अनुभव के आधार पर संविधान निर्माता द्वारा धर्मनिरपेक्षता के आदर्शों को अपनाया गया जिसके अंतर्गत नैतिकता अध्यामिकता और मानव धर्म को विशेष महत्व दिया गया। इस आदर्श को प्राप्त करने के लिए संविधान में निम्नलिखित प्रावधान किए गए।
1 धार्मिक स्वतंत्रता: संविधान के द्वारा देश के सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान की गई है। अनुच्छेद 25 द्वारा मौलिक अधिकारों के अंतर्गत लोगों को किसी भी धर्म को मानने, अनुसरण, आचरण, विश्वास, पूजा अर्चना की स्वतंत्रता प्रदान की गई है। जिसका आज से यह है कि किसी भी नागरिक को किसी भी धर्म को माने या पालन करने के लिए वाद्य नहीं किया जा सकता है।
2 अस्पृश्यता का अंत: पंथनिरपेक्षता का आदर्श इस बात पर बोल देता है कि सामाजिक जीवन में जाति या धर्म के आधार पर किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा। संविधान के अनुच्छेद 17 के द्वारा अस्पृश्यता जैसी सामाजिक रीति का अंत किया गया। अतः धर्म के आधार पर मनुष्य द्वारा मनुष्य पर होने वाले अत्याचार को समाप्त कर दिया गया।
3 धर्म के आधार पर भेदभाव का अंत –संविधान द्वारा धर्म के आधार पर नागरिकों के साथ होने वाले भेदभाव को निषिद्ध किया गया। अनुच्छेद 15 के अनुसार किसी भी व्यक्ति को धर्म के आधार पर किसी सार्वजनिक स्थान में प्रवेश से नहीं रोका जाएगा। अनुच्छेद 16 के अनुसार सार्वजनिक पदों पर नियुक्ति के मामलों में धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा।
4 धार्मिक उद्देश्य से किया जाने वाला व्यव्य कर मुक्त:–संविधान द्वारा नागरिकों को न केवल धार्मिक स्वतंत्रता तथा धार्मिक संस्थाओं की स्थापना की स्थापना प्रदान की गई वरम धार्मिक परियोजनाओं पर होने वाले को भी व्यव्य कर मुक्त कर रखा गया। अनुच्छेद 27 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि धार्मिक या परोपकारी कार्यों के लिए खर्च की जाने वाली संपत्ति पर कोई कर नहीं लगाया जाएगा। संविधान की इस व्यवस्था से पता चलता है कि भारत एक धर्म विरोधी राज्य ना होकर धर्म को संरक्षण देने वाला राज्य है।
5 धार्मिक संस्थाओं की स्थापना और धर्म प्रचार की स्वतंत्रता:–संविधान द्वारा धर्म को पूरी स्वतंत्रता दी गई है । अनुच्छेद 26 के द्वारा प्रत्येक संप्रदाय को धार्मिक कार्यों के प्रबंधन की पूरी स्वतंत्रता दी गई है। इसके अंतर्गत प्रत्येक संप्रदाय को धार्मिक तथा परोपकारी उद्देश्य के लिए संस्थाएं स्थापित करने उन्हें चलाने चल अचल संपत्ति रखने धार्मिक कार्यों के प्रबंध करने तथा एन या प्रबंध करने की पूरी स्वतंत्रता दी गई है। संक्षेप में नागरिकों को संविधान द्वारा वेद सीमा में वेद साधनों की सहायता से धर्म के प्रचार प्रसार की पूरी आजादी प्रदान की गई है।
6 धार्मिक शिक्षा का निषेध:–धर्मनिरपेक्षता के उच्च आदर्शों के प्रशिक्षण में संविधान के अनुसार 28 राज्य में यह व्यवस्था की गई है कि किसी भी सरकारी शिक्षण संस्थानों में धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा सकती है तथा गैर सरकारी किंतु सरकार से आर्थिक सहायता या मान्यता प्राप्त शिक्षण संस्थानों में किसी को धार्मिक शिक्षा या उपासना करने के लिए बढ़ाया नहीं किया जा सकता है । संविधान में प्रतिपादित लोक कल्याण एवं लोकतंत्र के आदर्श के अनुरूपधन निरपेक्षता का यह आदर्श अत्यंत स्ट्रिक्ट एवं औचित्य पूर्ण है।