परिचय: -
एक समय था, जबकि भारत वर्ष जगतगुरु कहलाता था। विश्व के कोने-कोने से शिक्षार्थी यहां के विश्वविद्यालयों में विद्या ग्रहण करने आते थे। परंतु परिस्थितियों के चक्रवात में भारत ऐसा फंसा है कि आज यहां और शिक्षा और अज्ञान का साम्राज्य है। विश्व के निरीक्षण ओं का एक बड़ा प्रतिशत भारत में विद्वान है। यहां की नारियों की स्थिति और भी दयनीय है। अक्षर ज्ञान स्कूली शिक्षा तकनीकी शिक्षा आदि में वे बहुत पिछड़ी हुई है।
स्त्री शिक्षा का अतीत और वर्तमान रूप: -
ऐसा नहीं है कि भारतीय नारी या सदस्य अशिक्षित रही हो। प्राचीन काल में स्त्रियों को भी पुरुषों के समान शिक्षा दी जाती थी। अनुसुइया गार्गी लीलावती आदि विदेशियों ने अपने ज्ञान से समाज को प्रभावित किया था। आचार्य मंडन मिश्र की पत्नी ने जगतगुरु शंकराचार्य से शास्त्रार्थ करके स्त्रियों के गौरव को बढ़ाया था। परंतु दुर्भाग्य से भारत वर्ष को आक्रमणकारियों के युद्ध झेलने पड़े। अस्तित्व के लिए जूझते हमारे देश का शैक्षणिक विकास रुक गया। भारतीय नारी को अपनी लाज बचाने के लिए घर की दहलीज में सीमित रहना पड़ा। परिणाम स्वरूप अशिक्षा और घूंघट उसकी विवशता बन गए।
उल्लेखनीय बात यह है कि युगो तक विद्यालय शिक्षा से वंचित रहने पर भी नारी ने पुरुष समाज को सूसंस्कारित करने का बीड़ा उठाया।
नारी शिक्षा की आवश्यकता: -
नारी और पुरुष दोनों समाज रूपी रथ के दो पहिए हैं। दोनों का समान रूप से शिक्षित होना आवश्यक है। समाज के कुछ पुरातन पंथी लोग स्त्री शिक्षा के विरोधी हैं। वह स्त्री को पराया धनिया पांव की जूती या अन उत्पादक मानकर पुरुषों के समकक्ष नहीं आने देना चाहते। परंतु वे भूल जाते हैं कि मनुष्य जीवन की सबसे मूल्यवान शक्तियां नारी के हाथों में है। नारिया ही मां बन कर बच्चों को पालती है उन्हें गुणवान बनाती है। शिशु की प्रथम गुरु मां ही होती है। वही उस कच्ची मिट्टी को अपने कल्पित सांचे में ढालती है। यदि नारी में ही विवेक ना होगा तो उसकी संतान एक ऐसे विवेक वाहन होगी? आता सर्वप्रथम नारी को शिक्षित संस्कारित एवं ज्ञान समृद्ध बनाना आवश्यक है
नारी शिक्षा का रूप:-
प्रश्न यह है कि नारी शिक्षा का रूप क्या हो? क्या नारी और पुरुष की शिक्षा में कोई अंतर होना चाहिए? उत्तर है -हां होना चाहिए जब प्रकृति ने उन्हें शोभावत या भी ने बनाया है तो उनकी शिक्षा भी भिन्न होनी चाहिए। नारी सभा उसे कोमल होती हैं। उसमें समस्त रचनात्मक क्षमता ए होते हैं।
आधुनिक शिक्षा -आज की नारी पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने की होर में इंजीनियरिंग, वाणिज्य, सेना, पायलट पुलिस आदि सेवाओं में जा रही है। आज के इस समानता समर्थन युग में इस दौर को उचित कहा जा रहा है। परंतु यह क्षेत्र वास्तव में उतने स्त्रियों उचित नहीं है। भागदौड़ की आवश्यकता होती है स्त्री के लिए वैसी शिक्षा और नौकरी चाहिए जिससे उसका नारीत्व बचा रहे। अपवाद रूप से यदि नारी समाज का अल्फांस कानून पुलिस सेना वाणिज्य जैसे क्षेत्रों में जाना चाहे तो उसे पुरुष वर्ग अधिकार दिए जाने चाहिए।
यह हर चीज में नारी का महत्व देकर हम नारी शिक्षा को बेहतर बना सकते हैं।