ईर्ष्या तू न गई मेरे मन से। 10th class ।By Motivational Speaker Md Usman Gani


पाठ का नाम -ईर्ष्या तू न गई मेरे मन से
पाठ विद्या -निबंध
लेखक का नाम-रामधारी सिंह दिनकर


                          पाठ का सारांश

दिनकर साहब के बगल में एक वकील साहब रहते थे। मैं बाल बच्चे नौकर चाकर धन वैभव मृदुभाषी पत्नी सब प्रकार से सुखी
है।
लेकिन वह सुखी नहीं है। इनको बगल के बीमा एजेंट से ईर्ष्या है कि एजेंट के मोटर उसका मासिक आय सब कुछ उनका हो जाता
रिसिया को एक अनोखा वरदान है कि जिसके हृदय में यह अपना घर बनाता है उसको प्राप्त सुख के आनंद से वंचित कर देता है।
दूसरों से अपने की तुलना करा प्राप्त सुख का अभाव उसके हृदय पर दंश दर्द के समान दुख देता है।
अपने अभाव को दिन-रात सोचते-सोचते अपना कर्तव्य भूल जाना दूसरों को हानि पहुंचाना ही श्रेष्ठ कर्तव्य मानने लगता है।
रिसिया की बड़ी बेटी निंदा है जो हर एक ऋषि आलू मनुष्य के पास होता है इसीलिए तो ईर्ष्यालु मनुष्य दूसरों की निंदा करता है। वह सोचता है कि अमुक व्यक्ति यदि आम लोगों की आंखों से गिर जाएगा तो उसका स्थान हमें प्राप्त हो जाएगा।
लेकिन ऐसा नहीं होता। दूसरों को गिरा कर अपने को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता है तथा कोई भी व्यक्ति निंदा से गिरता भी नहीं। निंदा निंदा के सद्गुणों को हराश कर देता है। जिसकी निंदा की जाए उसके सद्गुणों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
निंदा का काम जलाना है वह सबसे पहले उसी को जलाती है जिसके हृदय में वह जन्म लेती है। कुछ लोग समाज में ऐसे होते हैं जो किसी की निंदा लोगों को सुनाने के लिए मर्डर आते रहते हैं। जैसे ही उनकी निंदा को सुनने वाला दिखाई पड़ा बस उनके हृदय का ग्रामोफोन बस उठता है तथा वे अपना संपूर्ण कांड होशियारी से सुना देते हैं।
ईर्ष्यालु व्यक्ति जब से दूसरों की निंदा करने का कार्य प्रारंभ करता है उसी समय से वह अपना कर्तव्य भूलने लगता है। केवल यही चिंता रहती है कि जैसे अमुक व्यक्ति आम लोगों के आंख से गिर जाए।
चिंता मनुष्य के जीवन को खराब कर देता है। लेकिन चिंता से बदतर ईर्ष्या होती है। क्योंकि ईर्ष्या मानव के मौलिक गुणों को ही नष्ट कर देता है। ईर्ष्या एक चारित्रिक दोष है जिससे मनुष्य के आनंद में बाधा पड़ जाती है। जिस आदमी के हृदय में रसिया का उदय होता है उसके सामने सूर्य भी माध्यम लगता है पक्षियों का मधुर संगीत भी प्रभावित नहीं करता।
फूल से भरा उपवन को भी वह उदास देखता है।
अगर आप यह कहते हैं कि निंदा रूपवान से अपने प्रतिद्वंद्वियों को आहत कर हंसने में मजा आता है तो वह हंसी मनुष्य की नहीं बल्कि राक्षस की होती है और वह आनंद दैत्यों की होती है।
निंदा करने वाले लोग आपके सामने प्रशंसा और पीछे निंदा करते हैं। ऐसे लोग सदैव अपने प्रतिद्वंदी यों के बारे में ही सोचा करते हैं। जो व्यक्ति महान चरित्र के होते हैं ऐसे व्यक्ति का हृदय निर्मल और विशाल होता है वह अपनी निंदा की परवाह ही नहीं करते।
दूसरी तरफ जो निंदा करने वाला है हमारी चुप्पी को देखकर अहंकार से भर जाता है कि मैंने अमुक व्यक्ति को नीचे गिराने में कामयाब हूं इसके बाद तो वह अनेक अनुचित कार्य करने के लिए सोचने लगता है।
नित्य से ने ईर्ष्यालु लोगों से बचने का उपाय उसे दूर होना बताया है।
ईर्ष्या से बचने के लिए मनुष्य को मानसिक रूप से अनुशासित होना पड़े गा। ईर्ष्यालु व्यक्ति भी सकारात्मक सोच उत्पन्न करा कर मानव को ईर्ष्या से बचाया जा सकता है।


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